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दॄढ़ इच्छाशक्ति

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                    दॄढ़ इच्छाशक्ति     कोई भी काम करने के लिए जरूरी बातें ! जिसके बिना सफल हो पाना नामुमकिन है! १॰ अगर किसी भी क्षेत्र में सफलता पाना हो तो उसे ठानना पड़ेगा! २॰ मतलब उसे उस कारण को ढूँढ निकालना पड़ेगा कि मैं जो करने वाला हूँ , उसका कारण क्या है ? ३॰ जो इंसान सफलता पाना चाहता है , उसका कारण निश्चित हो! ४॰ उस व्यक्ति का WHY? ( क्यों) साफ होना चाहिए मतलब वह यह काम क्यों करना चाहता है ? ५॰ जो काम करना चाहता है उसका कारण मजबूत होना चाहिए! ७॰ किसी चीज को पाने की इच्छा ही काफी नहीं है उसे उसको ठानना पड़ेगा “चाहिए ही चाहिए”! ६॰ वह इंसान तब तक उस वस्तु को नहीं पा सकता जब तक उस व्यक्ति के अंदर उस काम को     करने  की दृढ़ इच्छा  शक्ति पैदा नहीं होती! ७॰ अगर हम उससे कहेगें यह काम करो वह नहीं करेगा जब तक कि वह उसे करने के लिए दृढ़      संकल्पित ना हो जाए! ८॰ उस व्यक्ति के अंदर उस काम करने की जो वो करना चाहता है उसके लिए ताकत पैदा नहीं      होगी! वह या तो  काम को शुरू नहीं करेगा  ,  किसी के कहने पर शुरू भी किया तो उसे बीच में      ही छोड़ देगा!    

ब्रम्ह ज्ञान

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                    ब्रम्ह ज्ञान  जो अमर है , उसे मृत्यु का क्या भय किसी महान उदेश्य के लिए प्राण देना मृत्यु नहीं होती ! १॰ प्रपंच क्या है ?    उत्तर :   जो कुछ दिखाई देता है , प्रपंच है ! २॰  जो दिखाई देता है , से क्या तात्पर्य है ?    उत्तर : जो दृष्टिगोचर है मन और इंद्रियो का विषय है ! जो मैं स्वंय जनता हूँ ! वही दृश्य है ! ३॰ जो दृष्टा है , उसे कौन जनता है ?  स्वंय को कौन देखता है ?    उत्तर : वो स्वंय उसे देखने की किसी को आवश्यकता नहीं पड़ती ! जैसे सूर्य को प्रकाश के लिए  किसी दीये की  जरूरत नहीं पड़ती वह स्वंय प्रकाशमान है !       ४॰ यह संसार कहाँ से आया ?       उत्तर :  यह सृष्टि उससे सिर्फ उससे आई है !वह कौन है ? वह ब्रम्ह है , वह ईश्वर है , वही अपनी माया से संसार की  रचना है  ,  वही इस संसार का रचनाकर  , पालन और संहारक है !     ५॰ ब्रम्ह संसार को रचना , पालन , और संहारक कैसे करता है ?    उत्तर : जिस प्रकार मकड़ी अपने जाल की रचना करती है , उसी में विचरण करती है , और फिर उसी को निगल जाती  है  , उसी प्रकार संसार की रचना